लघु उद्योग क्या है? इसका महत्व, फायदे एवं शुरू करने का तरीका।

लघु उद्योग की यदि हम बात करें तो आम तौर पर इसमें MSME का पूरा सेक्टर शामिल होता है । और जैसा की हम सबको विदित है की MSME का शाब्दिक अर्थ Micro, Small Medium Enterprises से लगाया जाता है। इसलिए जब भी कहीं पर छोटे मोटे काम धंधों की बात आती है तो वहां पर सिर्फ स्माल इंटरप्राइजेज का ही जिक्र नहीं होता बल्कि सम्पूर्ण MSME Sector का जिक्र होता है। भारत सरकार ने भी जब भी कोई योजना छोटे मोटे रोजगार को प्रोत्साहित करने के लिए जारी की है उसमें सम्पूर्ण माइक्रो, स्माल, मीडियम सेक्टर को ध्यान में रखते हुए जारी की हैं।

इसलिए आम जनमानस के पटल पर भी लघु उद्योग की छवि अकेले स्माल इंडस्ट्री को लेकर नहीं बल्कि सम्पूर्ण एमएसएमई सेक्टर को लेकर बनी हुई है। इसलिए आज हम हमारे इस लेख के माध्यम से यही जानने का प्रयत्न करेंगे की भारत जैसे विशालकाय देश में इस सेक्टर के तहत व्यापार करने के क्या क्या फायदे हो सकते हैं और आख़िरकार ऐसे कौन कौन से व्यापार या काम हैं जो एमएसएमई सेक्टर के तहत आते हैं। कहने का अभिप्राय यह है की इस लेख में हम लघु उद्योग के बारे में तो जानेंगे ही लेकिन साथ में एमएसएमई के बारे में भी जानने का भरसक प्रयत्न करेंगे।

लघु उद्योग क्या है

लघु उद्योग क्या हैं (What are Laghu Udyog) 

वैसे यदि हम सैद्धांतिक रूप से देखें तो लघु उद्योग एमएसएमई सेक्टर की तीन श्रेणियों में से बीच की श्रेणी है। अर्थात सरकार ने MSME Sector को तीन श्रेणियों माइक्रो, स्माल एवं मीडियम में विभाजित किया है। चूँकि स्माल का शाब्दिक अर्थ लघु होता है इसलिए इसे बीच की श्रेणी कह सकते हैं।

लेकिन यदि हम आम बोलचाल की भाषा में इसका अर्थ समझने का प्रयत्न करेंगे तो हम पाएंगे की लोग लघु उद्योग का अर्थ छोटे मोटे काम धंधों जैसे साबुन बनाने का काम, जूते चप्पल बनाने का काम, पेन पेन्सिल, कॉपी किताब इत्यादि बनाने के काम से लगाते हैं। जो की कुछ हद तक ठीक भी है लेकिन कोई भी बिजनेस उसके आकार एवं टर्नओवर के आधार पर माइक्रो, स्माल या फिर मीडियम हो सकता है।

और अभी हाल ही में अर्थात 2020 की परिभाषा के अनुसार ऐसे उद्योग जिन्हें स्थापित करने में एक करोड़ से अधिक एवं दस करोड़ से कम का निवेश हुआ हो और जिनका टर्नओवर पांच करोड़ से अधिक एवं पचास करोड़ से कम हो लघु उद्योग कहलाते हैं। इसलिए कहा जा सकता है की किसी उत्पाद विशेष के उत्पादन को लेकर इसकी परिभाषा तय नहीं की जा सकती । हाँ लेकिन इतना जरुर है की सरकार ने MSME Sector के तहत कुछ उत्पादों को रिज़र्व किया हुआ है जिनकी लिस्ट हम इसी लेख में आगे अवश्य देंगे।

एमएसएमई की समग्र परिभाषा (MSME Definition in Hindi)

जैसा की हम पहले भी बता चुके हैं की MSME Sector को मुख्य रूप से तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है। आम तौर पर माइक्रो का अर्थ सूक्ष्म उद्योगों यानिकी ऐसे उद्योग जिनको स्थापित करने में 1 करोड़ से कम का निवेश हुआ हो और इनका टर्नओवर 5 करोड़ से कम हो।

दूसरा स्माल एंटरप्राइज यानिकी लघु उद्योगों यानिकी ऐसे उद्योग जिनको स्थापित करने में 1 करोड़ से अधिक एवं 10  करोड़ से कम का निवेश हुआ हो और जिनका टर्नओवर 5 करोड़ से अधिक एवं 50 करोड़ से कम हो। मीडियम एंटरप्राइज यानिकी मध्यम उद्योगों  जिनको स्थापित करने में 10 करोड़ से अधिक एवं 20 करोड़ से कम का निवेश हुआ हो। और जिनका टर्नओवर 50 करोड़ से अधिक एवं 100 करोड़ से कम हो। उपर्युक्त परिभाषा से स्पष्ट है की चाहे सूक्ष्म उद्योग हो, लघु उद्योग हो, या फिर मध्यम उद्योग इनकी परिभाषा निवेश एवं टर्नओवर पर आधारित है न की किसी उत्पाद विशेष पर।

लघु उद्योग का अर्थव्यवस्था में महत्व (Importance of laghu udyog)

केवल लघु उद्योग ही नहीं अपितु सम्पूर्ण एमएसएमई सेक्टर भारतीय अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। यह क्षेत्र देश में सामाजिक, आर्थिक ट्रांसफॉर्मेशन को प्रोत्साहित करता है। यही कारण है की यह औद्योगिक क्षेत्र राष्ट्रीय उद्देश्यों की पूर्ति के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। यह क्षेत्र एक ऐसा क्षेत्र है जो देश में सर्वाधिक लोगों को रोजगार तो प्रदान करता ही है साथ में गरीबी को कम करना और शहरों की तरफ होने वाले पलायन को भी कम करने में सहायक है।

इसमें को दो राय नहीं की इस क्षेत्र से जुड़े उद्यम देश की प्राद्यौगिकी को तो प्रमोट करते ही हैं लेकिन इसके अलावा उद्यमशील इको सिस्टम बनाने में भी सहायक होते हैं। लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं की भारत में आज भी इस सेक्टर के पास पर्याप्त मात्रा में संसाधन उपलब्ध नहीं हैं लेकिन इस विवशतापूर्ण वातावरण में भी इस क्षेत्र ने पिछले कुछ वर्षों में निरंतर विकास का प्रदर्शन किया है। यही कारण है की वर्तमान में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम का यह सेक्टर अत्यधिक जीवंत एवं गतिशील सेक्टर बन गया है।

वैसे देखा जाय तो एमएसएमई सेक्टर बड़े उद्योगों की तुलना में कम पूँजीगत लागत पर अधिक लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान करता है इसके अलावा ये ग्रामीण इलाकों में भी औद्योगिकीकरण कराने में सहायक होते हैं। वैसे देखा जाय तो इस सेक्टर की तरफ सरकार का ध्यान तो पहले से गया हुआ है और सरकार समय समय पर इस क्षेत्र को प्रोत्साहित करने के लिए अनेकों योजनायें भी चलाती हैं ।

लेकिन ये उद्योग समय पर ऋण न मिलना, उत्पादों को संग्रहित करने के लिए उचित व्यवस्था न होना, आधुनिक प्रौद्योगिकी का समय पर न पहुँचना, मार्केटिंग इत्यादि समस्याओं से जूझते रहते हैं। लेकिन इसके बावजूद यह औद्योगिक क्षेत्र घरेलू उत्पादन, निर्यात से होने वाली आय, परिचालन लचीलापन इत्यादि के जरिये राष्ट्रीय विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।

भारत में लघु उद्योग शुरू करने के फायदे  

यहाँ पर हम फिर से स्पष्ट कर देना चाहते हैं की साधारण बोलचाल की भाषा में लघु उद्योग के फायदे का अर्थ एमएसएमई के फायदों से ही लगाया जाता है। इस तरह के छोटे स्तर पर उद्योग शुरू करने के अनेकों फायदे हैं जिनमें से कुछ प्रमुख फायदों की लिस्ट निम्नवत है।  

  • जहाँ पहले यह केवल निवेश पर आधारित थे वर्तमान में इन्हें निवेश एवं टर्नओवर दोनों पहलुओं पर परिभाषित किया गया है। और नई परिभाषा में भारत सरकार ने निवेश की सीमा में काफी वृद्धि कर दी है जिसके चलते भारत में एमएसएमई के आंकड़ों में भारी वृद्धि हो सकती है। सरकार द्वारा संचालित योजनाओं का फायदा अधिक उद्योगों को मिल सकता है।
  • सरकार ऐसे उद्यमों को प्रोत्साहित करने के लिए कुछ स्थितियों में इन्हें बिजली के बिल में रियायत प्रदान करती है।
  • यह उद्यमियों को विलम्ब होने वाले भुगतानों के प्रति सुरक्षा प्रदान करता है।
  • सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम के तहत पंजीकृत उद्यमों को पेटेंट रजिस्ट्रेशन पर 50% तक की अनुदान राशि दी जा सकती है।
  • इसमें को दो राय नहीं है की लघु उद्योग शुरू करने के लिए उद्यमी को कम पूंजीगत लागत की आवश्यकता होती है। इसलिए ऐसे लोग जिनकी निवेश करने की क्षमता कम हो वे भी अपने सपने को मूर्त रूप दे सकते हैं।
  • छोटे मोटे उद्यम स्थापित करने के लिए उद्यमी को सरकार का समर्थन हासिल होता है इसलिए सरकार तरह तरह की योजनाओं के तहत उसे प्रोत्साहित करती है।
  • इस क्षेत्र से उत्पादित उत्पादों को आसानी से निर्यात करने के उद्देश्य से भी सरकार द्वारा इनकी सहायता की जाती है।
  • उद्योग आधार, एमएसएमई डाटा बैंक इत्यादि में पंजीकृत उद्यम से सरकारी एजेंसी विभागों द्वारा एक निश्चित प्रतिशत में उत्पाद ख़रीदे जाते हैं ताकि ये आसानी से आगे बढ़ सकें।
  • एमएसएमई रजिस्ट्रेशन यानिकी उद्योग आधार रजिस्ट्रेशन कराने के लिए उद्यमी को न तो किसी सरकारी कार्यालय के धक्के खाने की आवश्यकता होती है। और न ही किसी प्रकार का कोई शुल्क का भुगतान करने की आवश्यकता होती है।

खुद का लघु उद्योग कैसे शुरू करें ( How to start own laghu udyog in India)

जैसा की अब तक हम यह तो जान चुके हैं की लघु उद्योग MSME Sector की तीन श्रेणियों सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम में से एक है। लेकिन आम बोलचाल की भाषा में समस्त एमएसएमई सेक्टर को ही लघु उद्योग समझ लिया जाता है। और दूसरा जो मिथक इस बारे में जनता में व्याप्त है वह यह है की शायद कोई ऐसे विशेष काम या व्यापार हैं जो इस श्रेणी के तहत आते हैं।

जबकि यह सत्य नहीं है सच्चाई यह है की सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों की परिभाषा उनमें लगे निवेश एवं उनके टर्नओवर पर आधारित है न की किसी प्रोडक्ट विशेष पर। इसलिए उद्यमी चाहे कोई भी व्यापार कर रहा हो वह भी सूक्ष्म, लघु या मध्यम उद्यम हो सकता है। तो आइये जानते हैं की खुद का लघु उद्यम स्थापित करने के लिए उद्यमी को क्या क्या कदम उठाने की आवश्यकता हो सकती है।

1. प्रोजेक्ट का चयन (Selection of Project)

जो उद्यमी खुद का लघु उद्योग शुरू करने का विचार कर रहा हो उसे सर्वप्रथम अपने प्रोजेक्ट का चयन करना होता है। और इसका चयन करते समय उद्यमी को एक बात का विशेष ध्यान रखना होता है की उसका प्रोजेक्ट किसी ऐसे विचार या आईडिया पर आधारित हो जो लोगों की जिन्दगी आसान बनाने या किसी भी तरह की परेशानी को दूर करने का दावा करता हो। यहाँ पर हम कुछ आसान से टिप्स का जिक्र करके जानने का प्रयत्न करेंगे की उद्यमी कैसे और किस आधार पर अपने प्रोजेक्ट का चयन कर पाने में सक्षम हो पायेगा।

  • सबसे पहले उद्यमी को अपनी रूचि का विश्लेषण करना चाहिए और पता करना चाहिए की व्यापारिक आईडिया उसकी रूचि के अनुरूप है की नहीं।
  • व्यापार शुरू करने में उद्यमी द्वारा अर्जित पिछला अनुभव भी बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है इसलिए उद्यमी को इस बात का पता करना होगा की वह व्यापारिक आईडिया उसके पास प्राप्त अनुभव के अनुकूल है या नहीं।
  • उद्यमी द्वारा उस उत्पाद या सेवा विशेष सम्बन्धी प्रतिस्पर्धा का अवलोकन किया जाना भी अति आवश्यक है और उसका बाजार में क्या स्थिति है इसका भी पता करना होगा।
  • उद्यमी को चाहिए की वह उसके अंतर्मन में चहलकदमी कर रहे व्यापारिक आईडिया से सम्बंधित उस क्षेत्र विशेष के किसी एक्सपर्ट से बात कर ले।
  • जिस क्षेत्र विशेष में उद्यमी लघु उद्योग शुरू करने की सोच रहा है उस क्षेत्र के विकास होने या गिरने की कितनी संभावना है इसका अनुमान भी लगाया जाना चाहिए। और उद्यमी को सारे विश्लेषण करने के बाद यह लगना चाहिए की यह उसके लिए गोल्डन अवसर है।         

2. प्रोजेक्ट की अवधारणा (Concept of project)

अब यदि उद्यमी द्वारा उपर्युक्त बताई गई सभी बातों पर अच्छे से विचार विमर्श एवं विश्लेषण कर लिया गया हो। तो लघु उद्योग शुरू करने की ओर उद्यमी का अगला कदम प्रोजेक्ट की अवधारणा का होना चाहिए। इस गतिविधि को बेहद प्रभावी ढंग से करने के लिए उद्यमी को निम्न चार बातों का ध्यान रखना बेहद आवश्यक है।

  • उद्यमी अपने लघु उद्योग के माध्यम से जो प्रोडक्ट उत्पादित करना चाहता है उसका आकार, साइज़ एवं प्रकृति क्या है इसकी पूरी जानकारी होना अति आवश्यक है।
  • इस तरह के उत्पाद का उत्पादन करने के लिए उद्यमी को किस प्रकार की तकनीक की आवश्यकता हो सकती है।
  • इस उत्पाद के उत्पादन के लिए अर्थात लघु उद्योग स्थापित करने के लिए उपयुक्त जगह एवं लोकेशन का चुनाव करना।
  • प्रोजेक्ट की अवधारणा के दौरान ही उद्यमी को इस बात का भी ध्यान रखना होता है की उस उत्पाद विशेष के उत्पादन के लिए जो भी तकनिकी एवं आर्थिक संसाधन चाहिए। वह उनका प्रबंध कहाँ से और कैसे करेगा।

3. उत्पाद या सेवा का चयन (selection of Product or service )

जैसा की हम सबको अच्छी तरह से ज्ञात है की यदि उद्यमी द्वारा खुद का लघु उद्योग स्थापित किया जायेगा तो उसे अपने ग्राहकों को सेवा या उत्पाद में से कुछ न कुछ तो अवश्य प्रदान करना होगा। लेकिन जहाँ तक सेवा की बात है तो इसका कोई मूर्त रूप न होने के कारण लम्बाई, चौड़ाई, ऊंचाई इत्यादि नहीं होती है। लेकिन जब बात उत्पाद की आती है तो इसका चयन करते समय उद्यमी को अनेकों तरह की सावधानियाँ अपनाने की आवश्यकता होती है।

  • उद्यमी को उत्पाद की लम्बाई, गहराई,चौड़ाई एवं सम्पूर्ण आकार के बारे में सोचने की आवश्यकता होती है। ताकि वह तय कर पाए की वह अपने ग्राहकों तक इस उत्पाद को किस तरह की पैकेजिंग में पहुंचाएगा। जहाँ तक पैकिंग की बात है उद्यमी को इसकी डिजाईन इत्यादि के बारे में भी विचार करने की आवश्यकता होती है।
  • उद्यमी उत्पाद की वारंटी कितने समय तक के लिए देगा और उसकी ब्रांडिंग कैसे करेगा इस बात का भी ध्यान रखना अति आवश्यक होता है।
  • अब वो जमाना गया जब किसी व्यक्ति को कोई भी उत्पाद बेचकर सेल्समेन या कंपनी उसे अपनी सफलता माँ लेते थे। आज का जमाना ग्राहकों को पूर्ण रूप से संतुष्ट रखने का है ताकि वह बार बार उद्यमी के उत्पाद को ख़रीदे और औरों को भी खरीदने के लिए कहे। इसलिए उत्पाद के बिक जाने के बाद ग्राहक को सेवा कैसे प्रदान की जाएगी इस पर भी विचार किया जाना चाहिए।
  • इसके अलावा उद्यमी को लघु उद्योग के लिए उत्पाद का चयन करते समय उसे बनाने में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल की उपलब्धता, बाजार, सरकार की तरफ से दी जाने वाली सहायता एवं प्रोत्साहन की भी जानकारी होनी चाहिए।        

4. बिजनेस रजिस्ट्रेशन (Registration of Laghu Udyog)  

जहाँ तक लघु उद्योग के रजिस्ट्रेशन की बात है वर्तमान में एमएसएमई के तहत उद्योग आधार के माध्यम से ऑनलाइन मुफ्त में रजिस्ट्रेशन संभव है। लेकिन यह रजिस्ट्रेशन कराने से पहले उद्यमी को अपने व्यापार को एक वैधानिक रूप यानिकी अपने व्यापार को प्रोप्राइटरशिप, पार्टनरशिप , प्राइवेट लिमिटेड कंपनी इत्यादि के तहत रजिस्टर कराने की आवश्यकता हो सकती है ।

आम तौर पर इस तरह के ये पंजीकरण मिनिस्ट्री ऑफ़ कॉर्पोरेट अफेयर्स द्वारा किये जाते हैं जिनमें से कुछ ऑनलाइन तो कुछ ऑनलाइन ऑफलाइन प्रक्रिया के माध्यम से पूर्ण किये जा सकते हैं । इसके अलावा उद्यमी को टैक्स रजिस्ट्रेशन कराने, चालू खाता खुलवाने इत्यादि की भी नितांत आवश्यकता हो सकती है। और जहाँ तक MSME Registration की बात है उसकी सम्पूर्ण जानकारी इस लेख में दी हुई है।

यदि आप लघु उद्योग और कुटीर उद्योगों में शामिल व्यवसायों के बारे में जानना चाहते हैं। तो आप हमारे द्वारा लिखित यह लेख जिसमें सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों के तहत आरक्षित वस्तुओं की लिस्ट दी गई है भी पढ़ सकते हैं।

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